रिजर्व फ़ॉरेस्ट के भीतर पक्का गेट! देहरादून के खलंगा में वायरल वीडियो ने उठाए प्रशासन पर सवाल

देहरादून:

सोशल मीडिया की दुनिया में एक और चौंकाने वाला वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है। यह वीडियो उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के खलंगा रिजर्व फ़ॉरेस्ट क्षेत्र का है—जहां हरियाली, जैवविविधता और पर्यावरण संरक्षण का दावा किया जाता है—लेकिन हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है।

इस वीडियो को साझा किया है Ms. दीप्ति रावत वर्मा ने, और इसमें जो दिखता है, वो किसी भी जागरूक नागरिक को झकझोर देने के लिए काफी है।

वीडियो में क्या है?

वीडियो में एक शख़्स खुद को ठेकेदार बताता है और बेशर्मी से कैमरे के सामने कहता है कि यह जमीन ऋषिकेश निवासी अशोक अग्रवाल की है। वह आगे यह भी बताता है कि श्री अग्रवाल के पास यहां 40 बीघा भूमि है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि यह भूमि खलंगा रिजर्व फ़ॉरेस्ट क्षेत्र के भीतर आती है, जहां किसी भी प्रकार का निजी कब्जा या निर्माण कानूनी रूप से सख्त वर्जित है।

वीडियो में कैमरा जब आसपास घुमता है तो एक बड़ा, पक्का गेट साफ़ नज़र आता है—जिसे देखकर कोई भी अंदाजा लगा सकता है कि ये काम रातों-रात नहीं हुआ। सवाल यह है कि अगर यह वन क्षेत्र है, तो यह गेट वहां कैसे और किसकी अनुमति से लग गया?


प्रशासन की चुप्पी और तंत्र की लाचारी

उत्तराखंड वन विभाग, राजस्व विभाग और स्थानीय प्रशासन की कार्यशैली पर इस वीडियो ने गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या वन भूमि पर इस प्रकार से गेट लगाना, कब्जा करना, और फिर उसे निजी संपत्ति घोषित करना इतनी सहज प्रक्रिया बन चुकी है? और अगर नहीं, तो फिर 40 बीघा रिजर्व फ़ॉरेस्ट भूमि पर निजी निर्माण की प्रक्रिया को किसने आंखें मूंद कर आगे बढ़ने दिया?

क्या यह केवल एक व्यक्ति की ‘दबंगई’ है, या फिर इसमें कहीं न कहीं प्रशासनिक संरक्षण और मिलीभगत की बू भी है?


उत्तराखंड के जंगल—प्राकृतिक संपदा या प्राइवेट प्रॉपर्टी?

उत्तराखंड के जंगल न केवल पर्यावरण की दृष्टि से बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण माने जाते हैं। खलंगा रिजर्व फ़ॉरेस्ट ऐसा ही एक इलाका है जो अपने जैविक महत्व, प्राकृतिक शांति और पारिस्थितिकी संतुलन के लिए जाना जाता है।

लेकिन जब जंगल के भीतर इस तरह से पक्के गेट और निजी दावे दिखने लगें, तो यह सीधे-सीधे पर्यावरणीय अपराध की श्रेणी में आता है।


दीप्ति रावत वर्मा की सराहना

इस पूरे मामले में दीप्ति रावत वर्मा की जागरूकता और साहस की सराहना की जानी चाहिए। उन्होंने इस वीडियो को साझा कर केवल एक अवैध निर्माण नहीं उजागर किया, बल्कि एक पूरे ‘सिस्टम’ की खामियों और ढिलाई को भी सामने ला दिया है।


अब क्या होगा?

  • क्या प्रशासन इस वायरल वीडियो पर संज्ञान लेगा?
  • क्या अशोक अग्रवाल की ‘40 बीघा रिजर्व फ़ॉरेस्ट’ की सच्चाई की जांच होगी?
  • क्या यह गेट हटाया जाएगा और ज़िम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई होगी?
  • या यह भी उत्तराखंड की कई अनदेखी, अनसुनी खबरों की तरह एक दिन डिजिटल कब्रगाह में दफन हो जाएगा?

ये सिर्फ एक गेट नहीं है, ये उस सिस्टम का प्रतीक है जिसने जंगलों की आत्मा को कागजों में बेच डाला है।

📢 “प्रशासनिक मौन, भ्रष्ट गठजोड़ और जंगलों की लूट पर जनता का सवाल बनना जरूरी है। वरना अगला गेट आपके पहाड़ की चोटी पर भी लग सकता है!”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *