— अमितेंद्र शर्मा
जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने महाकुंभ 2025 को सनातन संस्कृति का वैश्विक मंच बनाने की रणनीति तैयार की, तब यह केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारत की आध्यात्मिक ताकत का महाआयोजन बन गया। लेकिन भारतीय मीडिया के लिए यह श्रद्धा और संस्कृति का उत्सव नहीं, बल्कि टीआरपी बटोरने का स्वर्णिम अवसर बन गया।
संगम में डुबकी लगाते करोड़ों श्रद्धालु? नहीं, खबर बनेगी ‘भारतीय मोनालिसा’!
सनातन की गूढ़ता पर विमर्श? नहीं, हेडलाइन होगी ‘आईआईटी बाबा’!
आध्यात्मिक चेतना का महासंगम? नहीं, चर्चा में होगी ममता कुलकर्णी!
महाकुंभ जहां विश्व को सनातन की व्यापकता का साक्षात्कार करवा रहा था, वहीं भारतीय मीडिया इसे एक ‘महा-तमाशे’ में बदलने की कवायद में जुट गई।
मोनालिसा: जब मीडिया को धर्म से ज्यादा चाहिए था चेहरा
हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक या उज्जैन—महाकुंभ के हर संस्करण में करोड़ों श्रद्धालु एकत्रित होते हैं, लेकिन इस बार मीडिया की निगाहें श्रद्धालुओं पर नहीं, बल्कि एक अनजान महिला पर टिक गईं, जिसे सोशल मीडिया ने मोनालिसा को महाकुंभ का आइकन करार दे दिया।
कैमरों की चमक, माइक्रोफोन की हलचल और ब्रेकिंग न्यूज की सनसनीखेज ध्वनि के बीच अब कोई आध्यात्मिक विमर्श नहीं था। सवाल यह नहीं था कि यह स्त्री कौन थी, बल्कि सवाल यह था कि मीडिया को इससे क्या फर्क पड़ता है?
आईआईटी बाबा: सनातन की शक्ति या सनसनी का स्वांग?
जब भारतीय मीडिया को ‘मोनालिसा’ से पर्याप्त मसाला नहीं मिला, तो वह एक नए ‘विलेन’ या ‘हीरो’ की तलाश में जुट गई। और उन्हें मिल गए आईआईटी बाबा—एक सन्यासी, जो कथित रूप से आईआईटी में पढ़े थे और अब संन्यास की राह पर थे।
संन्यास की गहराई और अध्यात्मिक यात्रा पर चर्चा करने के बजाय, मीडिया ने इसे सनसनी बना दिया:
“आधुनिक शिक्षा बनाम सनातन धर्म! आईआईटी ग्रेजुएट ने क्यों चुना सन्यास?”
काश, यही मीडिया काशी के असली विद्वानों के ज्ञान और तपस्या पर भी ऐसी ही रुचि दिखाती!
बॉलीवुड का तड़का: महाकुंभ में ममता कुलकर्णी की ‘गूढ़’ वापसी?
टीआरपी की खोज में मीडिया ने आखिरकार बॉलीवुड की ओर रुख किया, और उन्हें मिला ममता कुलकर्णी का नाम।
ध्यान दीजिए, यह वही मीडिया है जो साध्वी प्रज्ञा या अन्य धार्मिक महिलाओं को ‘कट्टर’ बताकर घेरता है, लेकिन जब एक पूर्व अभिनेत्री सन्यास की ओर कदम बढ़ाए, तो उसे ‘रहस्यमयी’ बना दिया जाता है।
भगदड़: जब मीडिया को चाहिए था हाहाकार
जब तक महाकुंभ शांति और भव्यता से चल रहा था, मीडिया को इसमें कोई रुचि नहीं थी। लेकिन जैसे ही एक छोटी भगदड़ हुई, मीडिया ने इसे “महाकुंभ की तबाही” के रूप में परोस दिया।
“आस्था का महासंगम बना अव्यवस्था का महाजाल! क्या मोदी-योगी का कुंभ एजेंडा फेल?”
वास्तविकता यह थी कि लाखों लोगों की सुरक्षा के लिए प्रशासन ने रात-दिन एक कर दिया था, लेकिन मीडिया को केवल वो दृश्य चाहिए था, जो डर बेच सके।
मीडिया का असली महाकुंभ—टीआरपी का महा तमाशा!
महाकुंभ सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक ताकत का प्रतिबिंब है। लेकिन भारतीय मीडिया इसे सनसनी और मसाले के धुएं में जलाकर टीआरपी की गंगा में डुबकी लगा चुकी है।
मोदी-योगी सरकार ने इस आयोजन को वैश्विक पहचान देने की कोशिश की, लेकिन भारतीय पत्रकारिता इसे ‘महाकुंभ तमाशा 2025’ में बदलने पर आमादा दिखी।
सनातन संस्कृति न कभी टीआरपी से चली है, न ही मीडिया की हेडलाइनों से प्रभावित होती है। लेकिन मीडिया की यह हरकत जरूर साबित कर गई कि भारत में धर्म से बड़ी ताकत केवल टीआरपी है!