HEADLINESIP स्पेशल रिपोर्ट | लेखन: अमित शर्मा
बांग्लादेश की राजधानी ढाका एक बार फिर सियासी ज्वालामुखी के मुहाने पर खड़ी है। खबरें हैं कि प्रधानमंत्री मुहम्मद युनूस सेना के दबाव में इस्तीफे पर विचार कर सकते हैं। देश में लोकतंत्र और सत्ता की लड़ाई अब निर्णायक मोड़ पर पहुँच चुकी है। सेना प्रमुख जनरल वाकर-उज़-ज़मान ने चुनावों को लेकर जो तीखी चेतावनी दी है, उसने युनूस सरकार की चूलें हिला दी हैं।
क्या सेना ने खुलकर चुनौती दी है?
बांग्लादेश आर्मी के चीफ ने हाल ही में एक गोपनीय बैठक के बाद बेहद कड़ा संदेश दिया –
“यदि सरकार निष्पक्ष चुनाव नहीं करा सकती, तो सेना को अपनी भूमिका तय करनी होगी।”
यह बयान भले ही सार्वजनिक नहीं हुआ हो, लेकिन सत्ताधारी गलियारों में इसकी गूंज साफ़ सुनी जा रही है।
ढाका: शुक्रवार के बाद सड़कों पर आग?
सूत्रों के मुताबिक़, शुक्रवार की नमाज़ के बाद ढाका के कई हिस्सों में प्रदर्शनकारी उतर सकते हैं।
इस्लामिक संगठन, कट्टरपंथी समूह और यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स – सब एकजुट हो रहे हैं।
टार्गेट किए जा रहे इलाक़े:
- गुलिस्तान
- मोतीझील
- ढाका यूनिवर्सिटी कैंपस
- बैतुल मुकर्रम मस्जिद के आसपास के क्षेत्र
सरकार ने रैपिड एक्शन बटालियन (RAB) को हाई अलर्ट पर रखा है, लेकिन हालात सरकार के हाथ से निकलते नज़र आ रहे हैं।
युनूस का इस्तीफा – तय या टाल?
युनूस को लेकर कयास तेज़ हैं कि वे इस्तीफा देने के बजाय “राष्ट्रपति शासन या इमरजेंसी” का दांव चल सकते हैं। लेकिन सवाल है – क्या सेना यह कदम बर्दाश्त करेगी?
जनरल वाकर की हालिया विदेश यात्रा भी इस परिदृश्य में अहम है – कहा जा रहा है कि उन्होंने अमेरिका और चीन के अधिकारियों से बांग्लादेश की राजनीतिक स्थिरता पर बात की है।
प्रदर्शनों में ‘खिलाफत’ की मांग?
सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि कुछ इस्लामी संगठनों ने खिलाफत-आधारित शरिया शासन की मांग फिर से बुलंद कर दी है। यह सिर्फ सत्ता परिवर्तन नहीं, शासन व्यवस्था बदलने की कोशिश भी बनती जा रही है।
क्या यह नया अरब स्प्रिंग है?
बांग्लादेश की इस उथल-पुथल में 2010 के अरब स्प्रिंग की झलक देखी जा रही है।
- जनता सड़कों पर
- छात्र संगठनों की बगावत
- इस्लामी नारों के साथ आंदोलन
- सेना की “हस्तक्षेप की भाषा”
यह सब मिलकर एक असाधारण संकट की ओर इशारा कर रहा है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया – चुप्पी या तैयारी?
संयुक्त राष्ट्र की तरफ़ से अब तक कोई ठोस बयान नहीं आया है।
लेकिन भारत, अमेरिका, चीन और यूरोपीय यूनियन – सब बांग्लादेश पर पैनी नज़र रखे हुए हैं।
भारत के लिए ये खासतौर पर संवेदनशील है, क्योंकि अस्थिर बांग्लादेश का मतलब है:
- बॉर्डर सुरक्षा को खतरा
- रोहिंग्या और अन्य शरणार्थियों की बाढ़
- इस्लामिक कट्टरपंथ की घुसपैठ
अब क्या?
युनूस सरकार की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है –
- शुक्रवार को क्या होता है?
- क्या सेना सीधा हस्तक्षेप करेगी?
- या युनूस खुद रास्ता देंगे?
- क्या बांग्लादेश लोकतांत्रिक रहेगा या सैन्य राज लौटेगा?
इन सवालों के जवाब आने वाले 48 घंटों में मिल सकते हैं। ढाका की सड़कों पर अब सिर्फ़ फैसले तय होंगे।