जनगणना-2027 का एलान: अब गिने जाएंगे लोग ही नहीं, जातियाँ भी!

– अमित शर्मा, विशेष रिपोर्ट | 

नई दिल्ली, 5 जून 2025

भारत की जनता के लिए लंबे समय से प्रतीक्षित खबर आ गई है। केंद्र सरकार जनगणना 2027 की आधिकारिक घोषणा जल्द करने जा रही है – और इस बार तस्वीर पहले से कहीं ज़्यादा व्यापक, संवेदनशील और राजनीतिक रूप से प्रभावशाली होने वाली है। जातिगत गणना को भी पहली बार जनगणना के साथ औपचारिक रूप से जोड़ा गया है, जिससे यह प्रक्रिया ऐतिहासिक बन गई है।

📌 जनगणना दो चरणों में होगी, जाति गणना के साथ

सरकार Census-2027 को दो चरणों में कराएगी और इसमें जनसंख्या के साथ जातियों की गणना भी शामिल होगी। यह निर्णय Census Act, 1948 की धारा 3 के अंतर्गत लिया गया है, और इसकी अधिसूचना 16 जून 2025 को राजपत्र (Official Gazette) में प्रकाशित की जाएगी।

📅 जनगणना की संभावित तिथियां:

  • संपूर्ण भारत के लिए:
    1 मार्च, 2027 की मध्यरात्रि को संदर्भ तिथि माना जाएगा।
  • लद्दाख, जम्मू-कश्मीर के बर्फ़बंद क्षेत्र, हिमाचल व उत्तराखंड के पहाड़ी इलाके:
    1 अक्टूबर, 2026 की मध्यरात्रि को संदर्भ तिथि निर्धारित की गई है।

क्यों है यह जनगणना इतनी महत्वपूर्ण?

  1. जातिगत डेटा पहली बार औपचारिक रूप से एकत्र किया जाएगा, जिससे सामाजिक न्याय योजनाओं, आरक्षण नीतियों और संसाधन वितरण में ऐतिहासिक बदलाव संभव हैं।
  2. राजनीतिक संतुलन पर बड़ा असर पड़ेगा — पिछड़े वर्गों, दलित समुदायों और अल्पसंख्यकों की वास्तविक स्थिति सरकार और समाज के सामने होगी।
  3. सांख्यिकी आधारित नीति-निर्माण को नया आयाम मिलेगा — शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और आवास योजनाओं के लिए डेटा अधिक सटीक और स्थानीयकृत होगा।

विपक्ष और सामाजिक संगठनों की मांगें हुईं पूरी?

वर्षों से सामाजिक न्याय से जुड़े संगठनों और राजनीतिक दलों की यह प्रमुख मांग रही थी कि जातिगत आधार पर आंकड़े सार्वजनिक रूप से एकत्र किए जाएं। अब जबकि सरकार ने इसे जनगणना के साथ जोड़ दिया है, इससे नई राजनीति का आधार भी बनने की संभावना है।

अब क्या होगा आगे?

16 जून 2025 को राजपत्र अधिसूचना जारी होते ही देशभर में तैयारी शुरू हो जाएगी।
डिजिटल प्लेटफॉर्म और मोबाइल आधारित डेटा कलेक्शन की योजना भी संभव है।
▶ यह भी संभव है कि NPR (National Population Register) और जनगणना की प्रक्रियाएं एक साथ जुड़ जाएं — जिससे आधार, राशन, और नागरिकता दस्तावेज़ीकरण का डेटा समेकित हो सके।


 आने वाले वर्षों की राजनीति, समाजशास्त्र और नीति निर्माण अब इस जनगणना के आंकड़ों से तय होगा। यह सिर्फ गणना नहीं, आगामी सत्ता संतुलन का ब्लूप्रिंट बन सकती है।

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